Saturday, April 21, 2012

विदेशी भाषा की चाह में भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत की हत्या

विदेशी भाषा की चाह में भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत की हत्या ऐसा लगता है कि सोनिया-मनमोहन सरकार का एकमात्र लक्ष्य है भारतीयता, भारतीय संस्कृति और सभी भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा को मिटाना। इसलिए कभी वह भारतीयता पर चोट करती है, कभी भारतीय संस्कृति के विरुद्ध कार्य करती है, तो कभी संस्कृत की 'हत्या' के लिए विदेशी भाषा रूपी शस्त्र चलाती है। संस्कृत की हत्या? जी हां, यह सरकार जिस नीति पर चल रही है उससे तो संस्कृत भाषा एक-दो साल में तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग देगी। उल्लेखनीय है कि देश के सभी 987 केन्द्रीय विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक संस्कृत भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती है। किन्तु 4 अप्रैल, 2012 को सरकार ने संस्कृत पढ़ाने की अनिवार्यता समाप्त कर दी है। अब बच्चे संस्कृत की जगह फ्रेंच और जर्मन भी पढ़ सकेंगे। दिल्ली और उसके आस-पास तथा कुछ अन्य महानगरों के केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन और फ्रेंच की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। संस्कृत के अध्ययन की अनिवार्यता समाप्त होने और विदेशी भाषा की चाह के कारण अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को संस्कृत के स्थान पर फ्रेंच या जर्मन पढ़ने को कह रहे हैं। संस्कृत-सेवियों का मानना है कि भारतीयों पर चढ़ा विदेशी भाषा का यह भूत संस्कृत की 'हत्या' कर देगा। संस्कृत-सेवियों का कहना है विदेशी भाषा की आड़ में यह सरकार संस्कृत को पूरी तरह समाप्त करने पर तुली है। संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा (संस्कृत बनेगी नासा की भाषा) है। दुनिया के अन्य देश अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और भाषा को बचाने के लिए कटिबद्ध हैं, जबकि भारत में प्राचीन भाषा संस्कृत की पढ़ाई तक बन्द की जा रही है। लोग प्रश्न कर रहे हैं कि केन्द्रीय विद्यालयों में अभी फ्रेंच और जर्मन के शिक्षक भी उपलब्ध नहीं हैं, फिर उन्हें पढ़ाने की जल्दबाजी क्यों की जा रही? जबकि सभी केन्द्रीय विद्यालयों में संस्कृत के योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध हैं। केन्द्रीय विद्यालयों पर कड़ी नजर रखने वाले एक विद्वान ने बताया कि फ्रेंच और जर्मन की अभी न तो पुस्तकें ही उपलब्ध हैं और न ही पाठ्यक्रम। अभी दिल्ली और आसपास के केन्द्रीय विद्यालयों में फ्रेंच और जर्मन जो लोग पढ़ा रहे हैं, उनके पास अपेक्षित उपाधियां भी नहीं हैं। इनमें से अधिकांश के पास नई दिल्ली के भारतीय विद्या भवन और मैक्समूलर भवन से फ्रेंच या जर्मन में छह-छह महीने का पाठ्यक्रम पूरा करने का डिप्लोमा है। यह डिप्लोमा बारहवीं उत्तीर्ण कोई भी विद्यार्थी प्राप्त कर सकता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जर्मन और फ्रेंच में बी.ए. कराता है। हो सकता है फ्रेंच और जर्मन पढ़ाने वालों में किन्हीं के पास बी.ए. की उपाधि भी हो। फिर भी उसके पास शिक्षक बनने की पात्रता नहीं है। फिर उन्हें किस आधार पर केन्द्रीय विद्यालयों में पढ़ाने की अनुमति मिल रही है? केन्द्रीय विद्यालय के एक अन्य शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि फ्रेंच और जर्मन के तथाकथित शिक्षकों को विशेष सुविधाएं क्यों दी जा रही हैं? बिना तैयारी के जल्दबाजी में फ्रेंच और जर्मन की पढ़ाई शुरू तो कर दी गई है। किन्तु देश के सभी केन्द्रीय विद्यालयों में फ्रेंच और जर्मन के इतने शिक्षक कहां से आएंगे? किसी छात्र के सामने उस समय बड़ी समस्या खड़ी होगी जब वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के किसी केन्द्रीय विद्यालय से दूर देश के किसी अन्य केन्द्रीय विद्यालय में जाएगा। उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय विद्यालयों में सरकारी सेवा में लगे लोगों के बच्चे ही मुख्य रूप से पढ़ते हैं। यदि दिल्ली में कार्यरत किसी कर्मचारी का स्थानान्तरण पटना हो जाता है तो स्वाभाविक रूप से वह अपने बच्चों को भी पटना के किसी केन्द्रीय विद्यालय में दाखिला दिलाएगा। यदि उसके बच्चे दिल्ली में फ्रेंच या जर्मन पढ़ रहे होंगे तो पटना में वह क्या पढ़ेगा? क्योंकि वहां तो इन विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं। फिर भी पता नहीं सरकार किस दबाव में फ्रेंच और जर्मन को पढ़ाने की जल्दबाजी कर रही है। सौजन्य : Link

Wednesday, April 18, 2012

Regional languages: (KVS )


Article  112. Regional languages: (KVS Education Code Page: 146,147)
Additional arrangements for teaching of the regional language / mother tongue shall be made, provided 20 or more students are willing to opt for the same. For this, part time teachers shall be appointed after obtaining sanction of the Assistant Commissioner.
Teaching of these should will be introduced from class VI and will continue up to class VIII and where need be in class IX and X also. The teaching will be during school hours for about two-three periods per week. The teaching of regional language /mother tongue  shall be stopped at the end of February each year.


अनुच्छेद 112.  क्षेत्रीय भाषाएं (KVS Education Code Page: 187,188)
क्षेत्रीय भाषा/मातृभाषा के लिए शिक्षण की अतिरिक्‍त व्यवस्था की जाएगी बशर्ते कि उसके लिए उसके लिए 20  या उससे अधिक विद्यार्थियों ने इसे चुनने का विकल्प दिया हो । इसके लिए अंशकालिक संविदात्मक अध्यापकों की नियुक्‍ति की जाएगी । किन्तु इसके लिए सहायक आयुक्‍त की स्वीकृति की जाएगी ।
इसके लिए शिक्षण व्यवस्था कक्षा VI से आरंभ होगी और कक्षा VIII तक जारी रहेगी । जहाँ तक कहीं इसकी आवश्यकता होगी वहाँ कक्षा IX और X में भी जारी रखी जाएगी । प्रत्येक सप्‍ताह स्कूल में शिक्षण की अवधि दो से तीन पीरियड होगी । प्रत्येक वर्ष फरवरी के अन्त में क्षेत्रीय मातृभाषा का शिक्षण रोक दिया जाएगा ।





Saturday, April 14, 2012

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा


26 मार्च, 2012 (दैनिक जागरण)

आदर्श नंदन गुप्त, आगरा: देवभाषा संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई दे सकती है। इसके वैज्ञानिक पहलू का मुरीद हुआ अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा है। इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है। गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन (इंडियन कल्चर) पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने जागरण से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया। उन्होंने बताया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था। इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के मिशन संस्कृत की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है। स्पीच थैरेपी भी : वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी होती है, क्योंकि इसके पढ़ने से मन में एकाग्रता आती है। वर्णमाला भी वैज्ञानिक है। इसके उच्चारण मात्र से ही गले का स्वर स्पष्ट होता है। रचनात्मक और कल्पना शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्मरण शक्ति के लिए भी संस्कृत काफी कारगर है। मिश्रा ने बताया कि कॉल सेंटर में कार्य करने वाले युवक-युवती भी संस्कृत का उच्चारण करके अपनी वाणी को शुद्ध कर रहे हैं। न्यूज रीडर, फिल्म और थिएटर के आर्टिस्ट के लिए यह एक उपचार साबित हो रहा है। अमेरिका में संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है।
Anal Kumar (अनल कुमार), TGT (Sanskrit), Kendriya Vidyalaya No.1, Patiala (PB)